एक संतुष्टिजनक भाव जरूरी नहीं की मात्र वासना के वशीभूत होकर प्राप्त किए जाए, समक्ष जीवन को हर समय अपने संज्ञान में रखकर चलते हुए आपको इतना प्रफुल्लित महसूस होगा की अगर आप किसी इंसान की मात्र आंखों में भी देखो तो आपको आनंद की अनुभूति होगी जिसमें उसे पाने और ना पाने की चाह उस इंसान की प्रकृति पर निर्भर करती है, कि वह अभी भी वासना में वशीभूत है या नहीं।
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Sunday, April 7, 2024
आंखे ।। aankhe by Manish jakhmi
वास्तविकता में अगर वासना को एक तरफ रखा जाए, तो ये काव्य लिपि बहुत ही सटीक साबित होती है।
Saturday, April 6, 2024
khayal।। ख्याल by शाही कलम
किसी के लिए सबसे बेहतर यह भी हो जाता है जब वो मात्र अपने ही ख्यालों में एक दुनिया बना लेता है, जिसका आभास वास्तविकता में असलियत की दुनिया के मुकाबले ज्यादा सुंदर और संतुष्टिजनक होता है, और जाहिर है कि एक इंसान ऐसे ख्याल तब ही चुनता है जब असली दुनिया में उसे सब चीजे विपरीत ही मिली हो जैसी उसने देखी और सुनी हो या समय दिया हो।
मनीष जख्मी।
शाही कलम
Thursday, April 4, 2024
क्रोध ।। krodh by manish jakhmi।।
यकीनन कोई किसी से इतना क्रोधित भी हो सकता है,शायद कुछ ऐसे शख्स एक वक्त पर ऐसे भाव मन में दे जाते है जिनकी वजह से इस तरह के शब्द बाहर आते है। हालांकि जितने कठोर भाव अंत में उभर कर आते है वह संबंध भी उतना नाज़ुक एवम प्रिय होता है आरंभ में।
ठहरा मैं अंतिम धूप तक,
तेरी शाम, अब तक कहीं देखता हूं,
होता तेरे जैसा भी,
कभी जमीर नहीं मैं बेचता हूं,
बनाया बाजीगर खैर मैंने,
पर खेल कहां मैं खेलता हूं,
एक शब्द है! भला,
हर्जाना जिसका झेलता हूं,
सुना है मैंने कि होते चेहरे एक जैसे,
सात इस दुनिया में,
अब तमाचा लानत का बाकि छह के गाल पर भी टेकता हूं।
Wednesday, April 3, 2024
विचार।। vichar by Manish jakhmi
के लिए काफ़ी होते है, हालांकि वास्तविक
समय पर ऐसा कुछ काम नहीं आता (यह
भी तो मात्र एक विचार है) अपने विचार से
प्रकट दृश्य को वास्तविक करने का प्रयत्न
करें सब संभव होगा। (बाकी आपके
विचार पर निर्भर करता है)
याचिका -------
ले आयी है,
जो बैठी बिठाई,
समस्या सही मेहमान है,
क्यों भागना इससे दूर,
देना तो सम्मान है।
ये पहली बार थोड़ी,
दिखा इसको,
अगर तुझमें भी अभिमान है
मन से भी तू सही ही कर,
भले हो जख्मी,
बाक़ी होना तो यशगान है।
@Manish jakhmi
@शाही कलम
Tuesday, April 2, 2024
कौन चाहे || kaun chahe
दोनों के दूर होने के बाद अक्सर दोनों को यही ख्याल आते है, परंतु असलियत तभी सामने आती है जब फिर से दोनों एक जैसे भाव के साथ मिले, बस यही भाव फिर से नहीं जाग पाता। बाकी इंसान की प्रवर्ती पर निर्भर करता है कि वो फिर से वापस जाकर अपने आपको कितना नीच साबित सकता है अपने महबूब के सामने।
(नीच से अभिप्राय तब है जब एक परिस्थिति दो से अधिक बार गुजर चुकी हो)
मैं चाहूँ तो तुम क्यों नहीं,
और तुम ना चाहो, मैं चाहूँ,
मैं गर ना चाहूँ, चाहोगे तुम नहीं,
चाहता सिर्फ मैं उसको जो मेरे पास नहीं,
एक मात्र ख्याल है,
शाही कलम
कोई चेहरा ?
आवाज ?
नाम?
अजी कुछ नहीं ।।
©शाही कलम
@मनीष जख्मी।
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