एक संतुष्टिजनक भाव जरूरी नहीं की मात्र वासना के वशीभूत होकर प्राप्त किए जाए, समक्ष जीवन को हर समय अपने संज्ञान में रखकर चलते हुए आपको इतना प्रफुल्लित महसूस होगा की अगर आप किसी इंसान की मात्र आंखों में भी देखो तो आपको आनंद की अनुभूति होगी जिसमें उसे पाने और ना पाने की चाह उस इंसान की प्रकृति पर निर्भर करती है, कि वह अभी भी वासना में वशीभूत है या नहीं।
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