दोनों के दूर होने के बाद अक्सर दोनों को यही ख्याल आते है, परंतु असलियत तभी सामने आती है जब फिर से दोनों एक जैसे भाव के साथ मिले, बस यही भाव फिर से नहीं जाग पाता। बाकी इंसान की प्रवर्ती पर निर्भर करता है कि वो फिर से वापस जाकर अपने आपको कितना नीच साबित सकता है अपने महबूब के सामने।
(नीच से अभिप्राय तब है जब एक परिस्थिति दो से अधिक बार गुजर चुकी हो)
मैं चाहूँ तो तुम क्यों नहीं,
और तुम ना चाहो, मैं चाहूँ,
मैं गर ना चाहूँ, चाहोगे तुम नहीं,
चाहता सिर्फ मैं उसको जो मेरे पास नहीं,
एक मात्र ख्याल है,
शाही कलम
कोई चेहरा ?
आवाज ?
नाम?
अजी कुछ नहीं ।।
©शाही कलम
@मनीष जख्मी।
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