Thursday, April 18, 2024

ना इधर का ना उधर का।। by manish jakhmi

जीवन में कभी कभी ऐसे पल आते है जहां पर दूसरा लिया गया फैंसला भी गलत निकल आता है और दूसरे से मतलब की पहला फैंसला तो गलत था है तभी तो व्यक्ति दूसरा फैंसला चुनता है, और अंत में संतुष्टि ढूंढने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। बाकी व्यक्ति की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।

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तस्बीह