Thursday, April 4, 2024

क्रोध ।। krodh by manish jakhmi।।

यकीनन कोई किसी से इतना क्रोधित भी हो सकता है,शायद कुछ ऐसे शख्स एक वक्त पर ऐसे भाव मन में दे जाते है जिनकी वजह से इस तरह के शब्द बाहर आते है। हालांकि जितने कठोर भाव अंत में उभर कर आते है वह संबंध भी उतना नाज़ुक एवम प्रिय होता है आरंभ में।





ठहरा मैं अंतिम धूप तक,
तेरी शाम, अब तक कहीं देखता हूं,
होता तेरे जैसा भी,
कभी जमीर नहीं मैं बेचता हूं,
बनाया बाजीगर खैर मैंने,
पर खेल कहां मैं खेलता हूं,
एक शब्द है! भला,
हर्जाना जिसका झेलता हूं,
सुना है मैंने कि होते चेहरे एक जैसे,
सात इस दुनिया में,
अब तमाचा लानत का बाकि छह के गाल पर भी टेकता हूं।

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