जीवन में कभी कभी ऐसे पल आते है जहां पर दूसरा लिया गया फैंसला भी गलत निकल आता है और दूसरे से मतलब की पहला फैंसला तो गलत था है तभी तो व्यक्ति दूसरा फैंसला चुनता है, और अंत में संतुष्टि ढूंढने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। बाकी व्यक्ति की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।
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