वक्त कभी कभी ऐसे फैंसले करने को कहता है जिसका हर्जाना हमें कुछ वक्त बाद भरना पड़ता है, परंतु कभी की एक हर्जाने को भरने में पूरी जिंदगी गुजर जाती है हालांकि भूलना एक अलग बात होने के बावजूद भी बहुत अच्छा किरदार निभाती है, परंतु फिर क्या फिर नए फैंसले और यही सब निरंतर प्रवाह होता रहता है।
मनीष जख्मी।
वो सिकंदर, था तब,
लिया प्रण, अब?
नहीं वक्त है इसके लिए,
तूने सोचा खुद इतना, करेगा क्या?
ये सब ?
मैं चुप नहीं,
है अंदर, वो समंदर,
छलकेगा,
कोर हिलेगी, जाने कब,
सहमा नहीं,
बस सुनता, बुनता
अंदर कुछ,
देखेगा कला तू भी,
जरूरत ज्यादा होगी जब ।
©By - शाही कलम